नमस्कार दोस्तों, apnasandesh.com में आपका स्वागत है। आज के आर्टिकल में हम पढ़ेंगे की सकारात्मकता से समस्याओं का समाधान कैसे मिलता है, और अकरात्मक विचार कैसे निर्माण होते है, इसके बारे में हम इस लेख में जानकारी प्राप्त करेंगे उम्मीद है की यह लेख आपको पसंद आए।
सकारात्मकता से समस्याओं का समाधान – Solutions to Problems with Positive
वर्तमान युग में सामाजिक वैज्ञातिक व भौतिक क्षेत्रां में तेजी से विकास होते जा रहा है। हमारे सच्चे सुख और शांति का विकास होते जा रहा है। हमारे सच्चे सुख और शांति को इसी चकाचौंध में भुल गये। आज से सौ साल पहले इन सब चिजों का आविष्कार नही था, और हम जानते भी नही थे। इन्ही आविष्कारो से हमें नई-नई उपलब्धिया प्राप्त होती है, आधुनिक विकास में हम खुद को भुल गये है और खुद को भाग्यशाली समझ रहे है। कम्पुटर और लॅपटॉप का हमें ज्ञान नही था। लेकिन उसे भी हमने अपने में उन्नति करके जान लिया है। छोटी सी मायका्रेचिप कितना कमाल करती है, बटन दबाते ही सभी काम हो जाते है।
भौतिक साधनों से आंतरिक शक्तिया मिलेगी ?
आधुनिकता और भौतिक साधनों के बीच मनुष्य फसता और थकता जा रहा है। भौतिक साधनों के बीच मनुष्य सुख व समाधान के बीच लंबी दुरी बना ली है। सुख सुविधा के बिच फंसा मनुष्य सतुष्टता को किसी और चिज में ढुंढ रहा है। योगा, प्राणायाम, मेडीटेशन, आध्यात्म की और भारतीय संस्कृति पिछड गई है।
लेकिन कुछ ऐसे महत्वपूर्ण पच्छिमी लोग भारतीय संस्कृती और उनका लक्ष्य बढा रहा है। हम अपने आंतरिक शक्ति और क्षमता का स़्त्रोत कहा है, इसका हमें ज्ञान नही है। हम विचीत्र दुविधा में फंसे हूये है।
सकारात्मकता हमारे जिवन की आवष्यकता – Positiveness Requires Our Life :
रोज के व्यवहारीक जिवन में हम दो शब्द हमेशा सुनते है। सकारात्मकता और नकारात्मकता जिवन के लिये सकारात्मकता होना आवश्यक है, हमारे सभी समस्याओं का हल सकारात्मकता में मिलता है, खुशी मिलती है।
सवेरे से शाम तक हम सोचते है कि हमें यह करना चाहिये लेकिन हम नही करते। जो काम मुझे करना है और मैं करती हुं वह हुआ सकारात्मकता। हम सोचने पर भी नही कर पाते वह हुआ नकारात्मकता। किसी को प्रोत्साहित करने पर जोश में आवेश में किसी बहाने और कारणां से कर लेते है।
नकारात्मकता से हमारा नुकसान – Negativity causes us to lose :
एक छोटी सी कहानी से नकारात्मकता के नूकसान सामने आये है :
प्राचिन भारत में गुरूकुल हुआ करते थे। विज्ञान, गणित के भाषा के साथ-साथ व्यवहार और आध्यात्म का भी ज्ञान दिया जाता था। एक गुरूकूल में एक बालक शिक्षा ले रहा था। वह अपने गुरू का प्रिय शिष्य था। शिक्षा समाप्त होने पर वह अपने गुरू की आज्ञा लेता है। चरण स्पर्श कर आशीर्वाद मांगता है। गुरूजी आशीर्वाद देते हुये कहते है कि मैं तुमसे बहूत प्रसन्न हुॅं घर जाओ और अपने कुल का नाम रौशन करो।
पर मेरी तुम्हारे लिये अंतिम शिक्षा है कि जब तुम योग तपस्या में लीन होंगे तो बंदरो को बिल्कूल याद नही करना। बच्चे ने गुरू का आशीर्वाद लेते हुए हामी भरी और वहा से निकल गया। बालक को गुरूजी की अंतिम शिक्षा का मर्म समझ नही आया। मनुष्य का मन बहोत ही चंचल होता है। उसे जो चिज के मना किया जाता है वो वही करता है। जैसे एक बच्चे को कहा जाये किसी चिज को हाथ न लगाये। सबका ध्यान इधर-उधर होने पर वह रखी हुई चिजों को उठाता है, दोस्तों यही तो है नकारात्मकता। जब गुरूकुल में शिक्षा ले रहे बच्चे को बंदर को याद करने मना किया गया।
साधना करते समय उसे वही याद आयेगा। वह सोचता है गुरूजी को बदरों ने क्या बिगाडा, मेरा क्या बिगाडा जो मैं उसे याद न करू? गुरूजी की अंतिम शिक्षा ने बच्चे की साधना ही भंग कर दि क्योंकी उसका गुढ रहस्य वह नही समझा। तब गुरूजी ने उसे प्रेम से समझाया बंदर अर्थात ही नकारात्मकता सोच। यही नकारात्मकता व्यक्ती के मन को चंचल बना देगी।
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धन्यवाद|
Author By : BK गीता …
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